हरिद्वार 27 जून । श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परम अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वतीजी महाराज ने कहा है कि कलयुग का अंतिम चरण अब आ गया है और एक वर्ष के अंदर ही प्रकृति में नया परिवर्तन होगा । पूरे विश्व के वातावरण और भारत की दशा तथा दिशा के अनुकूल किए गए सर्वेक्षण के बाद उन्होंने बताया कि सामान्य परिस्थितियां अब असामान्य में परिवर्तित हो रही हैं। वे आज विष्णु गार्डन स्थित श्री गीता विज्ञान आश्रम में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और असामान्य हो रहे राजनैतिक एवं सामाजिक वातावरण को आध्यात्मिक चिंतन से जोड़ते हुए भक्तों को भविष्य के प्रति सचेत कर रहे थे।
समाज में बढ़ रहे कलयुग के दुष्प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि समाज का ताना-बाना बिगड़़ रहा है। बाप- बेटी और भाई- बहन के रिश्ते कलंकित हो रहे हैं। संयुक्त परिवार की परंपरा ही समाप्त हो गई है, परिवार नियोजन ने कई रिश्ते समाप्त कर दिए हैं । प्रकृति विश्व की जनसंख्यिकी में आमूल चूल परिवर्तन करने वाली है । विभिन्न वैश्विक संस्थाओं का स्वरूप अधिक समन्वयकारी होगा तथा भारत विश्वगुरु की भूमिका में आएगा ।अन्न और जल जहरीले पैदा होने लगे हैं, जहरीला चारा खाने से गौदुग्ध की गुणवत्ता प्रभावित हुई है, तो मोटे अनाजों की पैदावार ही समाप्त हो गई है। परिजन और रिश्तेदारों ने परस्पर सहयोग के स्थान पर स्वार्थ को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है तथा संवैधानिक व्यवस्था संकट में है। सरकारी मशीनरी नाकारा और भ्रष्ट होती जा रही है तथा वर्षपर्यंत चलने वाली चुनावी प्रक्रिया से अब जनता का मन खट्टा हो गया है । उन्होंने सुझाव दिया की मन, वचन और कर्म में समानता होनी चाहिए क्योंकि धर्म संपदा बालों की संख्या कम हो रही है और धन संपदा वालों का वर्चस्व बढ़ रहा है, जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलेंगे वही सतयुग में प्रवेश करेंगे।
जलवायु परिवर्तन से बिगड़ रहे प्रकृति के वातावरण को प्रलयकाल का संकेत बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति का अपना नियम होता है, वह उतनी ही जनसंख्या को समाहित करती है जितनी उसकी सामर्थ्य होती है और क्षमता से अधिक आबादी जब बढ़ जाती है तो किसी न किसी प्राकृतिक आपदा के माध्यम से जनहानि और धनहानि का संयोग स्वत: ही बन जाता है, ऐसा सृष्टि में कई बार हो चुका है ।विश्व के अनेक देशों के आपस में असामान्य हो रहे रिश्तों पर चिंता व्यक्त करते हुए शतायु संत ने कहा कि जो भी अस्त्र-शस्त्र बनते हैं उनका प्रयोग अवश्य होता है और वर्तमान समय में कोई भी राष्ट्राध्यक्ष स्वयं को किसी से कम नहीं मानता है, न ही किसी के दिल में किसी दूसरे के प्रति सम्मान है। आगामी दशक की ग्रह दशा को आम जनमानस के लिए अशुभ बताते हुए उन्होंने कहा कि विश्व की जनसंख्या का एक बड़ा भाग समाप्त हो जाएगा और जो आवादी बचेगी उसमें भारतीयों की संख्या सर्वाधिक होगी। बहुमत एवं अल्पमत पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं कि जिनकी संख्या अधिक हो वह विजयी हो जाएगा या राजा बन जाएगा, कौरव सौ थे पांडव पांच धे, महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई । रावण के साथ उसका पूरा परिवार था लेकिन राम -लक्ष्मण केवल दो भाई ही थे राम ने लंका पर विजय प्राप्त की । अंग्रेजों का साम्राज्य विश्व के कई देशों में था लेकिन भारत में एक दर्जन से अधिक क्रांतिकारी नेता नहीं थे, उनमें महात्मा गांधी थे तो सुभाष चंद्र बोस भी थे, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था । देवताओं से दैत्य अधिक ताकतवर थे संख्या वल में भी अधिक थे ,लेकिन विजय सदैव देवताओं की ही हुई। सत्य की विजय होती है और असत्य की पराजय होती है, समरसता में स्थिरता होती है जबकि अहंकार की शक्ति कुछ समय तक ही काम करती है। अहंकार जो भी करता है उसका पतन निश्चित है । उन्होंने सभी भक्तों से सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का आवाहन करते हुए कहा कि धर्म की सदा ही जय होती है जबकि अधर्म का नाश होता है, यह बातें हमारे सभी वेदों एवं धर्म शास्त्रों में वर्णित हैं । देवभूमि भारत को 'सर्वे भवंतु सुखिनः' वाली संस्कृति का देश बताते हुए उन्होंने कहा कि पूरे विश्व की तुलना में भारत के व्यक्ति अधिक सहिष्णु हैं, वे सभी का कल्याण चाहते हैं। संभावित प्रलय काल के बाद भारत ही विश्व की महाशक्ति बनकर उभरेगा, प्रलयकाल की सूक्ष्म परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा कि जिस दिन झूठ, फरेब, अहंकार और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का अंत हो जाएगा तभी सत्य का युग आएगा, जिसे सतयुग कहते हैं, ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है, क्योंकि युग परिवर्तनशील होता है। समयचक्र और परिस्थितियां बदलती रहती हैं, समयचक्र के बदलाव की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि इससे पूर्व वर्ण व्यवस्था थी, जो अब समाप्त हो गई है, कई सामाजिक कुरीतियों थीं जैसे सती प्रथा और तीन तलाक भी अब समाप्त हो गई है। पहले कर्म के आधार पर समाज को बांटा जाता था, वह व्यवस्था भी अब समाप्त हो गई है, सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। भारतवर्ष ऋषि मुनियों, साधकों और विद्वानों की भूमि है, यहां कबीर ,रहीम ,शबरी और केवट ने भी महानता प्राप्त की है । उन्होंने सभी श्रोताओं का आवाहन किया कि यदि सतयुग में जाना है तो आज से ही झूठ, फरेब, अनाचार, दुराचार, अहंकार और भ्रष्टाचार को त्याग दें, जीवन सौम्य बन जाएगा । मानव जन्म को प्रकृति की अनमोल धरोहर बताते हुए कहा कि भगवान ने मानव तन की रचना सृजन के लिए की है, हम सब को भगवान के इस उपकार का सम्मान करते हुए आवश्यकता से अधिक सांसारिक वस्तुओं का मोह त्याग देना चाहिए, ऐसा करते ही जीवन में शांति और सद्भाव का समावेश हो जाएगा।। इस अवसर पर अनेकों गीता मनीषी एवं वेदांताचार्यो ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य हरिओम ने वेदपाठी विद्वानों के साथ गुरु वंदना से किया, जिसमें यूपी, पंजाब ,हरियाणा, राजस्थान ,दिल्ली एवं गुजरात के साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक भी उपस्थित थे ।