Type Here to Get Search Results !

custum trend menu

Stories

    अन्न शुद्धि ही मन शुद्धि का मुख्य हेतु है.. आचार्य नारायण दास जी महाराज


    हरिद्वार।...आचार्य नारायण दास जी ने ऋषिकेश मे आयोजित सभा क़ो सम्बोधित करते हुए कहा कि 
    .." जीर्णे हितं मितं चाद्यात्।।"
    हमारे धर्मशास्त्र उपदेशित करते हैं, हमारा भोजन सात्वकि और सीमित होना चाहिए। स्कन्दपुराण में समुल्लिखित है- 
    किल्बिषं हि मनुष्याणामन्नमाश्रित्य तिष्ठति।
    यो  हि यस्यान्नमश्नाति स तस्याश्नाति किल्बिषम्।।
    अर्थात् जो जिसका अन्न ग्रहण करता है, वह साथ ही उसके पाप को भी खाता है। इसलिए हम किसका अन्न खा रहे हैं, इस सन्दर्भ में एक साधक को बहुत सावधानी रखनी चाहिए। यदि हम अन्नदोष और धनदोष से बचना चाहते हैं, तो अपना भजन बढ़ाना चाहिए तथा दानादि से धन को शुद्ध करना चाहिए।
    आहार के  विषय परमपूज्य महर्षि चरक महाभाग का उपदेश हम सबके लिए बहुत सार्थक है-
    'कोऽरुक्,  कोऽरुक्, कोऽरुक्।'
    अर्थात्  कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है?
    'हितभुक्, मितभुक्, ऋतभुक्।'
    अर्थात्  हितकारी सात्विक भोजन करने  वाला, उचित मात्रा में भोजन करने वाला और नियमानुसार भोजन करने वाला।
    अन्न शुद्धि ही मन शुद्धि का मुख्य हेतु है।
    एक ग्राम्य कहावत है-
    "जैसा खाए अन्न वैसा बने मन।"

    आचार्य नारायण दास
    ऋषिकेश, उतराखण्ड।
    ।। सत्यसनातनधर्मो  विजयतेतराम्।।जय🙏 जय🙏 श्रीसीताराम🙏

    " जीर्णे हितं मितं चाद्यात्।।"हमारे धर्मशास्त्र उपदेशित करते हैं, हमारा भोजन सात्वकि और सीमित होना चाहिए। स्कन्दपुराण में समुल्लिखित है- 
    किल्बिषं हि मनुष्याणामन्नमाश्रित्य तिष्ठति।
    यो  हि यस्यान्नमश्नाति स तस्याश्नाति किल्बिषम्।।
    अर्थात् जो जिसका अन्न ग्रहण करता है, वह साथ ही उसके पाप को भी खाता है। इसलिए हम किसका अन्न खा रहे हैं, इस सन्दर्भ में एक साधक को बहुत सावधानी रखनी चाहिए। यदि हम अन्नदोष और धनदोष से बचना चाहते हैं, तो अपना भजन बढ़ाना चाहिए तथा दानादि से धन को शुद्ध करना चाहिए।
    आहार के  विषय परमपूज्य महर्षि चरक महाभाग का उपदेश हम सबके लिए बहुत सार्थक है-
    'कोऽरुक्,  कोऽरुक्, कोऽरुक्।'
    अर्थात्  कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है?
    'हितभुक्, मितभुक्, ऋतभुक्।'
    अर्थात्  हितकारी सात्विक भोजन करने  वाला, उचित मात्रा में भोजन करने वाला और नियमानुसार भोजन करने वाला।
    अन्न शुद्धि ही मन शुद्धि का मुख्य हेतु है।
    एक ग्राम्य कहावत है-
    "जैसा खाए अन्न वैसा बने मन।"

    आचार्य नारायण दास
    ऋषिकेश, उतराखण्ड।
    ।। सत्यसनातनधर्मो  विजयतेतराम्।।

    Bottom Post Ad

    Image
    Trending News
      Image